नाम मोहित पांडे के साथ विशाल शर्मा की रिपोर्ट
ऐसे लोगों की भीड़ में कई बड़े हादसे हो जाते हैं जिसकी कोई भी सुविधाएँ नहीं है
रेल मंत्रालय से बजट मिलता रहता है तो बजट कहां जाता है क्या आला अधिकारियों के जेब में जाता है
ना ही कोई चिकित्सा पहुंच पाती है और वाहन जो तत्कालीन सुविधा यात्रियों को दे वह भी नहीं होते हैं
कई ऐसी घटनाएं इस सेंट्रल में हुई है की प्राइवेट वाहन के आते आते दुर्घटनाग्रस्त यात्री दम तोड़ देता है
सूत्रों की माने तो आए दिन डी.आर.एम. साहब निरीक्षण के लिए आते रहते हैं तो वह क्या निरीक्षण करते हैं उन्हें यात्रियों की आसुविधाएं नहीं दिखाई देती है
कानपुर सेंट्रल की अनदेखी और अनसुनी व्यवस्था जिसे रेलवे प्रशासन को ना दिखाई देती है और ना सुनाई देती है
कानपुर रेलवे स्टेशन में देखा जाए तो कुछ नहीं है ना ही कोई व्यवस्था और ना ही कोई सुविधा है आए दिन लाखों की तादात में यात्री आते और जाते रहते हैं
आपातकालीन दुर्घटना घटित होने पर इस रेलवे स्टेशन पर एक भी एंबुलेंस नहीं है
रेल मंत्रालय से बजट मिलता रहता है तो बजट कहां जाता है क्या आला अधिकारियों के जेब में जाता है
करोड़ों रुपए सरकार से मिलने के बाद भी यात्रियों के लिए एक सरकारी एंबुलेंस नहीं है आए दिन घटना घटित होती रहती है
कभी कोई ट्रेन से कट जाता है तो कहीं कोई ऐसी भी महिलाएं होती हैं जो गर्भावस्था में होती हैं और उनका नवजात शिशु जन्म लेते ही इस दुनिया को नहीं देख पाता है
ना ही कोई चिकित्सा पहुंच पाती है और वाहन जो तत्कालीन सुविधा यात्रियों को दे वह भी नहीं होते हैं
सूत्रों की माने तो आए दिन डी.आर.एम. साहब निरीक्षण के लिए आते रहते हैं तो वह क्या निरीक्षण करते हैं उन्हें यात्रियों की आसुविधाएं नहीं दिखाई देती है
अब सवाल यह है की जो बजट रेलवे मंत्रालय से पास होता है वह कानपुर सेंट्रल मे आते-आते सरकारी कागजों पर ही उनका दम टूट जाता है
आपातकालीन अवस्था में रेलवे सेंट्रल पर एंबुलेंस की सुविधा हो पाएगी या नहीं क्या रेलवेअधिकारी अपना जेब भरते रहेंगे
सवाल रेल मंत्रालय और आला अधिकारियों से हैं
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