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गुरुवार, 8 नवंबर 2018

दीपावली पर विशेष रूप से प्रचलित लोक कला विलुप्ति के कगार पर।#Public statement



विष्णु चंसौलिया की रिपोर्ट।
उरई। प्राचीन समय में दीपावली पर्व पर एक माह पहले से ग्रामीण क्षेत्रों में दिवाली नृत्य और दिवाली के कर्तव्य युवाओं और बुजुर्गों द्वारा मेलो और गांवों में दिखाई देते थे। किंतु आज के दौर मे आधुनिकीकरण ने इन लोक कलाओं का गला घोंट दिया है। आज भी कहीं कहीं दूर दराज के ग्रामीण उत्सवों में अभी भी इन लोक कलाकारों द्वारा लोक कलाओं के दर्शन हो जाते हैं। कालपी तहसील के ग्राम पिपरायाँ के सिद्ध बाबा के मेले में आस पास के आधा दर्जन ग्रामों से एकत्र होने वाले चार घंटे के मेले में ग्रामीण युवाओं द्वारा दिवारी नृत्य जैसी लोक कलाओं के दर्शन हो जाते हैं।                               
  दीपावली के दूसरे दिन परेवा को लगने वाले इस मेले में परम्परा अनुसार युवक भगवान कृष्ण के रूप में मोर पंख द्वारा मौनव्रत रख कर गायों को चराते हैं । तथा उनके मनोरंजन के लिए युवाओं द्वारा दिवाली नृत्य व विभिन्न प्रकार के करतब दिखाए जाते हैं।किंतु प्रायः यह देखने में आ रहा है कि इस तरह की लोक कलाऐ विलुप्तप्राय होती जा रही हैं।

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