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रविवार, 17 फ़रवरी 2019

हर घटना के बाद कोरी भाषणबाजी़, क्यों नही होती स्पष्ट कार्यवाही।#Public Statement



(पब्लिक स्टेटमेंट न्यूज)17/02/19 कानपुर बंद हो आतंकवाद के नाम पर राजनीति डॉ तारिक़ ज़की
आल इण्डियन रिपोर्टर्स एसोसिएशन (आईरा) के चेयरमैन
वर्ल्ड ऐड आर्गेनाइजेशन फ़ॉर ह्यूमन राइट के सेक्रेटरी जनरल डॉ तारीक़ ज़की ने कहा।
जम्मू कशमीर के पुलगावां में एक बार फिर आतंकवादी हमला हुआ और देश के 40/- जवानो को अपनी कुर्बानी देनी पडी ।
पूरे देश में आक्रोश है हर भारतीय आहत है तथा आतंकवाद पर स्पष्ट और सीधी कार्यवाही चाहता है ।
सरकार की ओर से हर हमले के बाद की तरह भाषणबाजी जारी हुई, की हम शहीद सैनिको की कुर्बानी व्यर्थ नही जानें देंगे और आतंकवादियों को सबक सिखाया जायेगा ।
सवाल यह उठता है की अब तक जितने भी आतंकी हमले हुए उस पर क्या कार्यवाही की गयी ।
सरकार तो आतंकवाद जड से मिटानें के दावे करती रही है, फिर क्यो समय समय पर देश की छाती आतंकवाद की घिनौनी साज़िशो से छलनी होती रही है ।
सरकार आतंकवाद को जड से समाप्त करने के लिये क्यो नही सीधी और स्पष्ट कार्यवाही करती है ।
यदी निश्पक्ष भाव से विश्लेषण किया जाये तो आतंक के नाम पर भी देश में राजनिति होती दिखेंगी । तथा आतंकवाद को भी सरकार तथा राजनैतिक दल केवल एक मुद्दे के तौर पर लेते रहे है तथा इससे अधिक से अधिक राजनैतिक लाभ कमाने की कोशिश करते अधिक दिखते हैं, ठोस एव निर्णायक कार्यवाही करते नही दिखते ।
यदी सरकार गंभीर होती तो वो भाषणबाजी से अधिक इस बात पर मंथन करती की आखिर संवेदनशील क्षेत्र में इतनी बडी मात्रा में आर,डी,एक्स, पहुंची कैसे,
सरकार का सूचना तंत्र तथा ख़ूफ़िया इकाईयां क्या करती रही, क्यो नही इतनी बडी कार्यवाही की भनक इन इकाईयों को लगी, आखिर सरकार एक बडी रकम इन इकाईयों के उपर खर्च करती है, फिर ये विफल क्यो  होती है, आखिर इनके होने का मतलब क्या है ।
क्यो नही खूफिया इकाइयों, और सूचना तंत्र की जवाबदेही तय की जाती है ।
कारण केवल राजनीति, सैनिकों की शहादत पर केवल देश में राजनीति होने लगी है । ये सही है की देश में आतंकवाद को पडोसी देश से इधन प्राप्त होता रहा है, किंतु हम अपनी सुरक्षा व्यवस्था में इतने पिछडे हुए क्यो है, सवाल ये भी लाजमी है ।
यहाँ मैं थोडा फ़्लैश बैक में जाना चाहुंगा ।
लाल 2000/- में लखनऊ जेल में लशकर ऐ तयबा के दो दुर्दान्त आतंकी गिरफ्तार कर लाये गये थे, जिन्हे फैजाबाद जिले में एक मुठभेड़ के बाद यू-पी, एस,टी,एफ़, ने गिरफ्तार किया था ।
उक्त मुठभेड़ में दो आतंकी आन स्पाट मारे गये थे, तथा दो जिंदा गिरफ्तार किये गये थे जिनका नाम सलीम क़मर क़मरुद्दीन तथा अलताफ़ था ।
इनके पास से ए,के,47- रायफल, तथा भारी मात्रा में आर,डी,एक्स, भी बरामद हुआ था ।
किंतु ये दोनो कोर्ट से बरी हो गये थे । कारण सरकार की लचर पैरवी थी ।
इसके अतिरिक्त और भी बहुत सी घटनाये तथा कारण हैं जिससे पता चलता है की सरकारें तथा राजनैतिक दल आतंकवाद को स्वंय पालती पोसती रही हैं केवल राजनैतिक स्वार्थ के लिये । तथा जमीनी सतह पर ढुलमुल निती के चलते ही आज आतंकवाद एक गंभीर समस्या बन गया है जिस्की कीमत हमारे देश के जवानों से लेकर आम जन तक को अपनी जानों की आहूती देकर चुकानी पडती है ।
देशवासियों को यह बात भी पता होनी चाहिये की पुलवामा की घटना को अंजाम देने वाले संगठन का मुखिया कभी भारत की जेल में चक्की पीसा करता था, किंतु एक "विमान अपहरण" की घटना में बदले के तौर पर तत्कालीन अटल सरकार ने ही इसे आजाद छोडा था ।
पुलवामा की घटना से पूरा देश ग़म ओर गुस्से में है, किंतु इस गुस्से को भी राजनेता अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिये भुनाने में लगे हैं तथा एैसी क्रियाएँ होने लगी की जैसे उक्त घटना के पीछे एक वर्ग विशेष का हाथ है ।
कुछ उत्साहित युवा कैंडिल मार्च आदी निकाल कर ऐसे ऐसे भणकाउ नारे लगा रहे हैं जिसमें एक वर्ग विशेष को टारगेट किया जा रहा है ।
उद्देश्य यह प्रतीत होता है की क्रिया की प्रतिक्रिया हो और देश में हिंसा भड़के, जिससे राजनैतिक हित साधे जा सकें ।
सवाल उन युवाओं पर भी उठाना लाजिमी है जो मार्डन टैक्नालॉजी से लैस होने पर भी राजनैतिक स्टंटों से विचलित हो जाते है, तथा यह नही सोचते की घर को जलाकर किसका भला कर रहे हैं । देश के किसी भी हिस्से मैं यदी किसी के भी जान,माल,को जरा भी छती पहुचंती है तो वो सीधे देश की ही छती होती है ।
एक छोटा सा सांप्रदायिक दंगा देश को बीसियों वर्ष पीछे धकेल देता है । अत स्वंय को देशभक्त प्रदर्शित करनें से पहले इन बुनियादी चीजों का युवा वर्ग कब संज्ञान लेगा तथा देश की राजनीति की दिशा कब बदलेगा ।
समय का चक्र यह सवाल बार बार करता रहा है ।

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