(विष्णु चंसौलिया की रिपोर्ट)19/03/19 उरई (जालौन)इसे चरमराई सरकारी व्यवस्था कहें या जीवन जीने की मजबूरी कि माधौगढ़ में बच्चों का बचपन कबाड़ के ढेरों में गुजर रहा है। यही नहीं सरकारी स्कूल के अध्यापक भी इस बात से बेखबर! हैं कि उनके यहां परीक्षा देने की वजाय उनके छात्र कबाड़ बीन रहे हैं। इसे देश का दुर्भाग्य! ही कहेंगे कि एक तरफ अमीर लोग त्यौहारों पर लाखों रुपए बर्बाद करेंगे तो वहीं गरीबों के एक तबके को पिचकारी भी मयस्सर नहीं होगी। जिसके लिए बच्चों को दिन भर कबाड़ बीनने के बाद अपनी पिचकारी की जुगाड़ बनानी पड़ रही है। त्यौहार में रंग बिरंगी पिचकारी, अबीर- गुलाल और मिठाई देखकर इनका मन ललचाता होगा, लेकिन गरीबी की मजबूरी इनकी जरूरत पर भारी पड़ जाती है। तो यह बच्चे कबाड़ बीनने लगते हैं। माधौगढ़ के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छोटू, गोपाल, बृजपाल, राजा बाबू आदि परीक्षा देने की बजाय कबाड़ इकट्ठा करने में लगे हैं। वैसे तो समाज में बहुत से स्कूलों के प्रबंधकों ने बड़प्पन दिखाते गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने की घोषणा कर अखबारों में सुर्खियां बनाई, पर वास्तव में क्या घोषणा करने वाले स्कूल प्रबंधन इन बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाने का काम करेंगे? ताकि इन का बचपन कचरा बीनने में न गुजरे।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें