(पब्लिक स्टेटमेंट न्यूज़ से अमित कौशल की रिपोर्ट)18/04/19 गत दिनों WHO यानी वर्ड हेल्थ
ऑर्गनाइजेशन ने भारत देश के उत्तर प्रदेश स्थित कानपुर शहर को पूरे विश्व में सबसे प्रदूषित शहर के खिताब से नवाजा है। और हो भी क्यों न यहां की जनता है ही ऎसे विचारों वाली जो अपने इष्ट देवों को पहले तो अपने घऱ पूरे सम्मान के साथ ऊंचे मोल चुका कर खरीदती है फिर मतलब निकल जाने के बाद उन्हीं मूर्तियों का इस कदर तिरस्कार करती है मानो हमारे इष्ट देव नही कोई दुश्मन थे।
हमारा हिन्दू समाज नौ दिनों तक माता को अपने घर बुला कर अंतिम दिन विदा करते हैं ,पर एक पाप भी करते हैं पूजन सामग्री का निस्तारण कूड़े के रूप में गंगा किनारे ,मंदिरो के बाहर या रास्ते मे फेक देते है
क्या यह उचित है ??
किनारे पड़ी पूजन सामग्री को जानवरों द्वारा खाना उन्हें पूरे रास्ते बिखेरना और उसके कारण प्रतिदिन राहगीरों का चोटिल होना ,जाम लगना आम बात है उस पर तारीफ लायक काम करता है हमारा नगर निगम प्रशासन जो हर त्योहार के बाद अपनी आंखे बंद रखता है और बड़े बड़े बैनर पर स्वच्छ भारत स्वच्छ भारत का प्रचार प्रसार करता है पर पर उसी काम को धरातल पर उतारने में असफल रहता है ।
इसके बाद आज चुनावी घमासान में कितने ही संभ्रांत राजनीतिज्ञ इस राह से गुजरते हुए कूड़े के ढेर को अनदेखा करते हुए निकल जाते हैं।
हम बात कर रहे है कानपुर से उन्नाव को जोड़ने वाले पुराने पुल की जिसके गेट पर न जाने कितने ही अनगिनत इष्ट देवों की मूर्तियों को कूड़े के ढेर में तब्दील कर दिया गया लोग अपने इष्ट देवों की पुरानी मूर्तियों को अपने घऱ से इस कदर बाहर फेंकते है मानो इष्ट देवों की मूर्ति नही कोई दुश्मन हो । परम्परा अनुसार यदि कोई कर्मचारी अपने कार्यभार से रिटायर होता है तो उसे भी हम ससम्मान विदाई देते है पर यहां तो लोग इष्ट देवों की मूर्तियों को इस कदर रिटायर करते है मानो ये उनके भगवान न होकर केवल मिट्टी की मूर्तिया मात्र है। ऊपर बैठा भगवान क्या सोचता होगा अपने भक्तों के बारे में यह पुन्य कमाने की लालच में कितना बड़ा पाप करते हैं। ।
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