विष्णु चंंसौलिया।
उरई।अपने मित्र कि कभी चोरी न करें और गुरु के साथ कपट न करें अगर कोई भी ऐसा करता है तो निश्चित ही वह दण्ड का भागीदारी हो जाता है या वह निर्धन हो होता है या फिर रोग से ग्रस्त हो जायेगा। यह बात श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन की कथा के दौरान साध्वी निष्कम्प चेतना जी ने बैठे श्रोताओं को अपनी सरस वाणी से कथा को श्रवण करातेे हुये सुदामा चरित्र के दौरान कही।.
श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर पुरानी नझाई में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन की कथा को अमृतसर से पधारी साध्वी ने निष्कम्प चेतना जी ने सुदामा चरित की कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि सुदामा और श्रीकृष्ण दोनों सखा थे। एक ही गुरु के यहां से दोनों ने शिक्षा ग्रहण की। सुदामा श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे लेकिन बचपन में उन्होंने यह भूल कर दी कि गुरु माता ने दोनों मित्रों को जंगल में लकड़ी काटने के लिए भेजा लकड़ी काटने के दौरान जोरदार बारिश होने लगी दोनों मित्र बारिश से बचने के लिए पेड़ का सहारा लेने लगे। श्री कृष्ण पेड़ के ऊपर चले गये और सुदामा नीचे बैठ गये तभी सुदामा को भूख लगी और सुदामा ने गुरु माता के दिये दोनों के हिस्सों के चने खा लिये। इस दौरान कृष्ण के पूंछा कि सुदामा तुम क्या खा रहे हो तो सुदामा ने चोरी करते हुए कहा कि ठंड के कारण के दांत किटकिटा रहे हैं। मित्र से भी की चोरी करना अपराध है इसकी सजा भुगतनी पड़ती है चाहे वह किसी रूप में क्यो न हो। हमेशा ईमानदारी से जो भाग्य उसी से संतुष्ट होना चाहिये किसी के हिस्से की चोरी कर तुम कैसे बड़े हो सकते हो क्योंकि भगवान को सभी के हिस्सो का ध्यान देना होता है। अगर आपने किसी के हिस्से का चुराया तो परमात्मा को उसकी पूर्ति करनी ही पड़ेगी। आपके हिस्से में जितना है उतना ही संतुष्ट रहें। अंत में परीक्षित नेे कथा का पूजन अर्चन कर प्रसाद वितरण किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें