जालौन:-उरई...
विष्णु चंसौलिया।
जिला खाद्य विभाग तो कुम्भकर्ण है तो उसकी तो बात ही न की जाये, पर जिला प्रसाशन व पुलिस भी इस मामले में ढीला, रोड पर, गली मोहल्लों में राशन दुकानों पर घडल्ले से बिक रहा गुटखा
उरई। केंद्र सरकार की आई गाइड लाइन के अनुसार अब गुटखा बेचना ही नही गुटखा थूकना भी बैन कर दिया गया है बेचते या थूकते पकड़े जाने पर क्राइम माना जायेगा। औऱ कानूनी कार्यवाही की जाएगी। गुटखा थूकने के मामले की पहली FIR दिल्ली सरकार ने लिख, गुटखा बेचने व खाने वालों से शक्ति से निपटने व नियमो का पालन करने का संदेश भी दे दिया है।
अब बात करे यूपी की तो योगी सरकार ने लॉक डाउन के पहले चरण में ही गुटखा बैन कर दिया था। परंतु जनपद जालौन के जिला मुख्यालय उरई में खाद्य विभाग सहित पूरा प्रशाशनिक अमला सोया हुआ है। क्योंकि यहां गुटखा न तो बैन हुआ है औऱ न होने से रहा। हकीकत ये है कि जिले के बड़े बड़े गुटखा माफियाओं को ये अनुमान था कि लॉक डाउन बढ़ने की सम्भवना है सो नामी गिरामी गुटखा "वीआईपी" ये तो नाम यज्ञसे ही वीआईपी है, "राज" इसका तो खाद्य विभाग राज तिलक तक कर चुका है। "साईं" इनकी बुराई नही करेंगे ये भगवान का नाम है। "भैरव" नाम ही भैरव है तो खाकर तो भैरव बनना तय है। इन ब्रांड के नामो के संचालकों ने तम्बाकू मिश्रित व पालीथीन पैक गुटखे को सैकड़ो कुंतल भंडारण कर लिया। इसके अलावा छोटे व बड़े राशन दुकानदारों व परचून दुकानदारों ने भी ब्रांडेड कंपनियों "राजश्री" "करमचंद्र" "विमल" "कमला पसन्द" नाम के गुटखों का बड़ी मात्रा में भंडारण कर लिया। इनको अनुमान था की गुटखा चादी के भाव बिकने वाला है। जैसे ही लॉक डाउन बढ़ने की घोषणा हुई मानो इनका गुटखा चांदी से सोना बन गया। लॉक डाउन 2.0 यनि दूसरे पार्ट में केंद्र सरकार द्वारा गुटखे को लेकर गाइड लाइन जारी की गई है कि न तो गुटखा बनाया जाएगा न बेचा जाएगा और न थूका जाएगा, पर हो उल्टा रहा है। जब साहब गुटखा बनेगा तो बिकेगा भी और जब बिकेगा तो थूकेगा भी। लॉक डाउन बढ़ने के बाद पहले व दूसरे दिन केंद्र सरकार की गाइड लाइन आने के बाद भी जिला मुख्यालय सहित जनपद के कोने कोने में इन ब्रांड के नामो का गुटखा सप्लाई भी हो रहा व दुगनी कीमत यनि 10 का 20 में और 20 का 40 में और ब्रांडेड कंपनियों के गुटखा पैकेट के दामो में 250 से 300 रूपये तक का उछाल आ गया। और यह गुटखा खुलेआम घडल्ले से बिका भी औऱ थूका भी। जनपद जालौन का खाद्य विभाग तो इनको पकड़ने और कार्यवाही करने के मामले में निठल्ला है विभाग का अपना नारा है "हम तो सोते रहे है और हम सोते रहेंगे" बस ख्याल रखो उनकी जेबो का, गर्म करो और जहर बेचो उन्हें किसी के मरने औऱ जीने से कुछ फर्क नही पड़ता। जिले का खाद्य विभाग इस निठल्लेपन की बदनामी पिछले काफी टाइम से झेल रहा है बहुत आरोप भी लगे। पर बेशर्म हो चुके इस विभाग को इससे भी कोई फर्क नही पड़ता। अब तो विभाग ने भी ठान लिया है कि जब बदनाम हो ही चुके है तो जेबे ही भर लो, हमारा चालान कौन काटने वाला है। तो अब आलम यू है कि जिले में गुटखा खूब बिक भी रहा है औऱ थूक भी रहा है। अब जिसको सरकार के फरमान की पड़ी हो सो गुटखा रुकवाये, खाद्य विभाग से तो ये होने से न रहा। तो अब गुटखा रुकवाने और न बिक पाने की जिम्मेदारी जिला प्रशाशन औऱ पुलिस प्रशाशन को लेनी पड़ेगी। औऱ गुटखा बनाने बालो, राशन की दुकानो व गली मोहल्लों की परचून की दुकानों पर बिक्री करने वालो व थूकने वालो पर कड़ाई से कानूनी हंटर चलाना पड़ेगा तभी इस पर अंकुश लग पाने की संभावना है। देखने वाली बात ये है कि कोरोना वायरस की माहमारी से निपटने के लिये खाद्य विभाग को छोड़ दे तो सभी अधिकारी कर्मचारी जी-जान से लगे हुये है। डॉक्टर, अधिकारी, कर्मचारी और पुलिस जान पर खेल कर इस महामारी से निपटने के लिये एडी छोटी का जोर लगाये हुये है। वही जिले के जिलाधिकारी जो सख्त आदेश देने और उसका पालन करवाने के लिये जाने जाते है। दिन रात मेहनत में जुटे हुये है डॉ. मन्नान अख्तर व तेज़ तर्रार कहे जाने वाले पुलिस अधीक्षक डॉ. सतीश कुमार किस प्रकार से गुटखे पर अंकुश लागाने में कामयाब होते है। क्योकि गुटखा भी कोरोना वायरस फैलाने की अहम भूमिका में से एक है सो इस पर अंकुश लगना बहुत आवश्यक है। वरना सरकार, डाक्टर, अधिकारियों कर्मचारियों और पुलिस की आधी मेहनत पर पानी फिर रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें