(पब्लिक स्टेटमेंट न्यूज से आकाश सविता की रिपोर्ट) 10 मई 2021 उत्तर प्रदेश:- पांच राज्यों में हुए विधानसभा के चुनाव और उसके आए नतीजों ने कहीं ना कहीं भाजपा के लिए चुनौती बड़ी कर दी है। पार्टी को पश्चिम बंगाल में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी हालांकि यह नहीं हो पाया। दूसरी ओर पार्टी असम में चुनाव जरूर जीत गई लेकिन उसे मुख्यमंत्री बदलना पड़ा तो वही पुडुचेरी में एनडीए के लिए अच्छी खबर है। इन सबके बीच भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल और असम में इस बार चुनौती बड़ी है। सबसे पहले बात पश्चिम बंगाल के करते है। भाजपा यहां राज्य में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरी है। 3 से 77 सीटों पर पहुंच गई है। परंतु इस बार उसके लिए चुनौती अलग है। यह चुनावती पश्चिम बंगाल में पार्टी को एकजुट रखने की है। संगठन के हिसाब से देखें तो पश्चिम बंगाल में भाजपा बहुत ज्यादा मजबूत नहीं रही है।
2019 के लोकसभा चुनाव में उसे जब 18 सीटों पर जीत मिली उसके बाद उसने उत्साह से विधानसभा चुनाव जरूर लड़ा था। 200 प्लस का लक्ष्य लेकर चुनावी रण में उत्तरी भाजपा 77 पर सिमट गई। ऐसे में अब उसे इस बात का डर है कि कहीं पार्टी विधायक तृणमूल के दबाव में टूट ना जाए। विधायक इधर उधर ना चले जाएं जैसा कि एक समय तृणमूल कांग्रेस में हुआ था। यही कारण है कि भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल में फिलहाल चुनौती बड़ी है। हाल में ही मुकुल रॉय को लेकर एक खबर को वायरल हुई थी जिसमें दावा किया जा रहा था कि वे पार्टी छोड़ देंगे। हालांकि खुद मुकुल रॉय ने इस बात का स्पष्टीकरण दिया। उनके ट्वीट को रिट्वीट करते हुए जेपी नड्डा ने भी उन्हें उनकी सोच पर मुबारकबाद दी। लेकिन एक बात तो जरूर है कि चुनाव संपन्न होने के कुछ दिन बाद से ही अगर इस तरह की अटकलें लगनी शुरू हो गई तो आगे की राह आसान नहीं होगी।
विशेषज्ञ यह भी बता रहे हैं कि जिस तरह से तृणमूल के विधायक टूट कर भाजपा में शामिल हुए थे और वह इस बार के चुनाव हार गए हैं। ऐसे में कहीं ना कहीं तृणमूल कांग्रेस के दबाव में वह एक बार फिर से वह वापस लौट सकते हैं। इसके अलावा भाजपा की सरकार नहीं बनी है। ऐसे में तृणमूल से जो लोग भी टूट कर आए थे उनके वापसी का भी सिलसिला शुरू हो सकता है। हालांकि, भाजपा ने ऐसे लोगों को सहज संकेत देते हुए शुभेंदु अधिकारी की ताकत बढ़ा दी है और उन्हें नेता प्रतिपक्ष बना दिया है। शुभेंदु पर नेता प्रतिपक्ष के जिम्मेदारी के साथ साथ इस बात की भी जिम्मेदारी होगी कि वह पार्टी को एकजुट रखें।
बात असम की करें तो यहां भी भाजपा के लिए हिमंत बिस्वा सरमा और सर्बानंद सोनोवाल के बीच में बैलेंस बनाना बड़ी चुनौती है। हालांकि भाजपा तमाम मुश्किलों से आगे बढ़ते हुए हिमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री तो जरूर बना दी लेकिन उसके सामने यह भी चुनौती है कि सर्वानंद सोनेवाल को किस तरह से उनके कद के हिसाब से पद दिया जाए। दोनों ही नेताओं के समर्थकों के बीच किसी प्रकार का मनमुटाव ना हो, भिड़ंत ना हो इस बात पर भी भाजपा को गौर करना होगा। हिमंत बिस्वा सरमा नाराज ना हो जाए इसलिए भाजपा ने चुनाव से पहले सीएम का चेहरा ऐलान नहीं किया। लेकिन अब जब एक सर्बानंद सोनोवाल को हटाकर दूसरे चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया गया है ऐसे में पार्टी के लिए चुनौतियां बड़ी हो गई है।
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